हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "कमालुद्दीन व तमाम नेमात" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامام المہدی عجل اللہ تعالی فرجہ الشریف
عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ عُثْمانَ الْعَمْرى رَضِىَ اللّهُ عَنْهُ قالَ، سَمِعْتُهُ يَقُولُ: وَاللّه إنَّ صاحِبَ هذَاالْأمْرِ لَيَحْضُرَالْمَوْسِمَ كُلَّ سَنَةٍ، فَيَرى النّاسَ وَ يَعْرِفُهُمْ وَ يَرَوْنَهُ وَ لايَعْرِفُونَهُ
हज़रत इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
हज़रत इमामें ज़माना अ.स. के नायब फरमाते हैं कि मैंने हज़रत से सुना है कि वह फरमा रहे थें,, खुदा की कसम तुम्हारे साहिबे अमर ,हर साल मनासिक हज में शिरकत करते हैं वह लोगों को देखते हैं और पहचानते हैं अलबत्ता लोग उन्हें देखते हैं लेकिन पहचानते नहीं हैं।
कमालुद्दीन व तमाम नेमात,8440